उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जाति नहीं, विकास परख रही पूरब की जनता

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राजनीति में विकास की बात तो सभी राजनीतिक दल करते हैं लेकिन जब जनता की अदालत में फैसले की घड़ी नजदीक आ जाती है तो दलीय आधार पर बंटी जातियों से जुड़े समीकरण ही सबके लिए महत्वपूर्ण हो जाते हैं। पूर्वांचल में पश्चिम की तुलना में श्रेणीवार जातियों की संख्या अधिक है, इसलिए यहां के चुनाव में भी किसी भी दल की सफलता के लिए जातिगत आधार पर पैठ बनाना जरूरी हो जाता है। यह सामान्य धारणा रही है। पर, उत्तर प्रदेश के वर्तमान विधानसभा चुनाव में यह देखना सुखद लग रहा कि जनता अपनी-अपनी जातियों से परे धरातल पर दिख रहे विकास को इस बार अधिक गंभीरता से परख रही है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में जातिगत अलगाव का अंत हो रहा है तथा सबका साथ, सबका विकास और सबका विश्वास की नीति पर हर गरीब, दलित, पिछड़े, शोषित और वंचित का सर्वस्पर्शी और सर्व-समावेशी विकास हो रहा है। ये सभी अब अपने हिस्से आई सरकारी योजनाओं से जीवन में आए बदलाव की तुलना कर रही है। एक मजबूत लोकतंत्र के लिए यह आवश्यक भी है कि लोग विकास पर मंथन करें। जनहित में क्या परिवर्तन हुआ, क्या अवश्यम्भावी होना चाहिए इसकी अपेक्षा के साथ अपनी पसंद पर मुहर लगाएं।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का स्पष्ट मानना रहा है कि जब तक उत्तर प्रदेश विकास के पथ पर तेज गति से अग्रसर नहीं होता, तब तक भारत के विकास को तेज गति नहीं दी जा सकती क्योंकि उत्तर प्रदेश अकेले ही कई यूरोपीय देशों की जनसंख्या से अधिक है। नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में यूपी की योगी सरकार के सहयोग से सालों तक पिछड़े रहने का दंश झेलने वाले पूरब के जिलों में विकास का सूर्योदय हो चुका है और अब पूर्वांचल विकास के क्षितिज पर भी चमकने लगा है। आज पूर्वांचल में विकास की लंबी छलांग उसे आत्मनिर्भरता की राह पर आगे बढ़ा रहा है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने ख़ास तौर पर पूर्वांचल के विकास पर ध्यान केन्द्रित किया है। अब यह क्षेत्र देश में विकास की नई धुरी बनने जा रहा है।

अंतिम दो चरणों का मतदान पूर्वांचल की ही कहानी को ईवीएम में कैद करने जा रहा है। प्राकृतिक व सांस्कृतिक रूप से बेहद समृद्ध होने के बावजूद पूर्वांचल गिनती के चंद सालों पहले तक देश ही नहीं, प्रदेश का सबसे पिछड़े इलाके के रूप में होती थी पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के मार्गदर्शन और योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व में पूर्वांचल पिछड़ेपन की यह बदनामी पांच साल पुरानी बात हो गई है। अब पूर्वांचल की चर्चा एक ओर विकास के तमाम सुनहरे पन्नों पर दर्ज है तो दूसरी ओर जनमानस के अंतर्मन में भी। लेकिन ये कार्य इतना आसान न था।

पूर्वांचल के भविष्य को सजाने और संवारने का सिलसिला तब शुरू हुआ जब भारतीय जनता पार्टी ने नरेन्द्र मोदी को 2014 के लोक सभा चुनाव में बाबा विश्वनाथ की नगरी काशी से लड़ाने का फैसला लिया। ये एक राजनीतिक दूरदृष्टि ही नहीं बल्कि विकास को नए तरीके से पारिभाषित करने का संदेश भी था कि आने वाली सरकार का फोकस सर्व-स्पर्शी विकास और सर्व-स्पर्शी कल्याण है। वर्तमान में केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री अमित शाह ने 2014 में लोक सभा चुनाव के समय यूपी के प्रभारी के रूप में ही पूर्वांचल की स्थिति को देखते हुए यह स्पष्ट निर्णय ले लिया था कि यदि यूपी में भाजपा की सरकार आती है तो पूर्वांचल को भी देश में विकास की मुख्यधारा में शामिल किया जाएगा। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में भी उन्होंने पूर्वांचल में विकास पर खासा जोर दिया। अब जगत प्रकाश नड्डा भी विकास की उस बयार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में अविरल बहाने के लिए कृतसंकल्पित हैं।

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रधानमंत्री मोदी के मार्गदर्शन में पूर्वांचल में विकास के हर आयाम को स्पर्श करते हुए इसे एक नई दिशा दी है। इंफ्रास्ट्रक्चर डेवलपमेंट, रोड के साथ ही शानदार हुई एयर कनेक्टिविटी, उद्योग, शिक्षा, बिजली, स्वास्थ्य, कृषि, पर्यटन हर क्षेत्र में पूर्वी उत्तर प्रदेश की सुनहरी तस्वीर सामने आई है। कभी गड्डायुक्त सड़कों के लिए बदनाम रहे इस क्षेत्र में पूर्वांचल एक्सप्रेसवे, गोरखपुर लिंक एक्सप्रेसवे अर्थव्यवस्था की रीढ़ बनते दिख रहे हैं। एक्सप्रेसवे के किनारे तैयार होने जा रहे औद्योगिक गलियारे रोजगार की समस्या पर पूर्ण विराम लगाने जा रहे हैं। सड़क परिवहन के साथ ही हवाई यात्रा की सेवा का अभूतपूर्व विस्तार हुआ है। काशी में इंटरनेशनल एयरपोर्ट पहले से था, अक्टूबर 2021 में भगवान बुद्ध की महापरिनिर्वाण स्थली कुशीनगर में भी इंटरनेशनल एयरपोर्ट लोकार्पित हो चुका है। यही नहीं, कुशीनगर से 50 किमी की दूरी पर गोरखपुर के एयरपोर्ट से 2017 के बाद डोमेस्टिक फ्लाइट की सेवा आगे ही बढ़ती गई है।

कभी पूर्वांचल के खाते में न्यून औद्योगिकीकरण का दंश था। यह कलंक भी तेजी से मिटा है। ‘एक जिला, एक उत्पाद’ योजना से हर जिले में एक विशिष्ट उत्पाद को उद्योग का दर्जा मिलने लगा है। गोरखपुर का टेराकोटा हो, आजमगढ़ की ब्लैक पॉटरी हो या फिर बनारस की खास सिल्क सारी। हुनर के उद्यमिता ब्रांडिंग ग्लोबल हुई है। इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि सुरक्षा का माहौल बनने और ढांचागत सुविधाओं के सुदृढ़ीकरण से निवेश भी धरातल पर उतर रहा है। मोदी-योगी सरकार में एक ओर द्योगों के लिए माहौल तैयार किया गया तो साथ में कृषि और इससे जुड़े अन्नदाता के हितों का भी ख्याल रखा गया। उदाहरण के लिए किसानी को बढ़ावा देने के लिए गोरखपुर में करीब तीन दशक बाद बना नया खाद कारखाना, पिपराइच व मुंडेरवा में नई चीनी मिलें और पूर्वांचल के नौ जिलों को की खेती को सिंचित करने वाली सरयू नहर राष्ट्रीय परियोजना को कोई भी देख सकता है। पांच साल पहले तक इनमें से किसी भी परियोजना के चालू होने की आस जनता के मन में नहीं रह गई थी।

पूर्वी उत्तर प्रदेश की सियासत को देखें तो एक लंबे दौर तक शिक्षा व स्वास्थ्य यहां चुनाव दर चुनाव विपक्ष का मुद्दा होता था। पर, इस बार के विधानसभा चुनाव में इसे सत्ता पक्ष ने अपना मुद्दा बनाया है। इसकी वजह भी है। सत्ता पक्ष ने गोरखपुर में विश्व स्तरीय चिकित्सा सुविधाओं वाले एम्स को सेवाप्रदायी बनाने के साथ ही पूर्वी उत्तर प्रदेश के हर जिले में मेडिकल कॉलेज खोलने की शुरुआत कर दी है। गोरखपुर क्षेत्र को ही देखे तो बस्ती, देवरिया व सिद्धार्थनगर में मेडिकल कॉलेज मरीजों की सेवा करने लगे हैं। कुशीनगर में इसका निर्माण कार्य जारी है। महाराजगंज व संतकबीरनगर में पीपीपी मॉडल पर बनाने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में कोई ऐसा साल नहीं रहा होगा जब प्रतिवर्ष तकरीबन दो हजार बच्चे इंसेफलाइटिस के चलते आसमय दम ना तोड़ देते हों। पिछले पांच सालों में इंसेफलाइटिस पर नकेल कसने में भी सरकारी तंत्र ने कामयाबी हासिल की है। पूर्वी उत्तर प्रदेश के माथे से यह अभिशाप मिट गया है। स्वास्थ्य के साथी शिक्षा के क्षेत्र में भी बदलाव पूर्वांचल में देखा जा सकता है। प्राथमिक स्कूलों से लेकर डिग्री कॉलेज, आईटीआई, पॉलिटेक्निक तक की एक नई श्रृंखला नजर आती है। इसके अलावा आजमगढ़ में महाराजा सुहेलदेव के नाम नए विश्वविद्यालय का हो रहा निर्माण भी आने वाले दिनों में शैक्षिक क्रांति का नया केंद्र बनेगा। इसी तरह गोरखपुर में बन रहा प्रदेश का पहला आयुष विश्वविद्यालय परंपरागत चिकित्सा पद्धतियों से इलाज व इसकी पढ़ाई को आगे बढ़ाने में मील का पत्थर साबित होने जा रहा है।

विकास के नए आयामों के साथ ही पूर्वांचल में आस्था का सम्मान भी जिक्र चुनावी माहौल में छाया हुआ है। सबसे बड़ा उदाहरण अविनाशी काशी है। काशी निर्विवाद विश्व की प्राचीनतम जीवंत नगरी है। इसके बाद भी इसे उपेक्षित हाल छोड़ दिया गया था। बाबा विश्वनाथ की इस पुरी की 2014 के बाद शनैः-शनैः लौटी भव्यता लगातार सुर्खियों में है। दिसम्बर 2021 में बाबा विश्वनाथ कॉरिडोर का लोकार्पण हो जाने के बाद और भी। आस्था का यह दिव्य केंद्र इन दिनों विश्व स्तरीय सुविधाओं से इतरा रहा है तो पर्यटन के जरिये रोजगार के नए अवसर भी सृजित कर रहा है। इन सबके बीच काशी के नवीनतम स्वरूप में भी उसकी प्राचीनता अक्षुण्ण है। 850 करोड़ रुपये की लागत से पुनर्स्थापित यह धाम भव्यताऔर दिव्यता का अनूठा संगम बन पड़ा है।