Ayodhya Land Dispute Case: 11वें दिन सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट ने अखाड़ा से कहा …तो खो देंगे मालिकाना हक

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नई दिल्‍ली : Ayodhya Land Dispute Case सुप्रीम कोर्ट आज यानी शुक्रवार को 11वें दिन में अयोध्‍या भूमि विवाद मामले में सुनवाई करेगा। निर्मोही अखाड़ा की ओर से गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में फिर से अपना पक्ष रखा गया लेकिन उसकी ओर से दी गई लिखित और मौखिक दलीलों में विपरीत नजरिया होने पर कोर्ट ने अखाड़ा की पैरवी कर रहे वकील सुशील जैन से कहा कि आप अपना नजरिया स्पष्ट करें। साफ बताएं कि आप जन्मस्थान को देवता और कानूनी व्यक्ति मानते हैं कि नहीं। इस पर निर्मोही अखाड़ा के वकील जैन ने कहा कि वह उन्हें कानूनी व्यक्ति मानने से इन्कार नहीं कर रहे। वह मालिकाना हक का दावा नहीं कर रहे सिर्फ पूजा प्रबंधन का अधिकार और कब्जा मांग रहे हैं।

इस पर संविधान पीठ के सदस्य जस्टिस डीवाइ चंद्रचूड़ ने जैन से कहा कि आपकी लिखित दलीलों में इससे उलट बात कही गई है। यदि आप भगवान रामलला का उपासक होने का दावा करते हैं तो विवादित संपत्ति से मालिकाना हक खो देंगे। इससे तो आपका संपत्ति पर एक तिहाई का दावा सीधे चला जाता है। दरअसल, अखाड़ा के वकील सुशील कुमार जैन ने अखाड़ा को विवादित स्थल पर रामलला विराजमान का एकमात्र आधिकारिक उपासक होने का दावा किया था। उन्‍होंने कहा था कि वह वहां पर पूजा के पूजापाठ के लिए पुरोहितों की नियुक्‍ति‍ करता रहा है। इस संविधान पीठ ने कहा कि जब आप यह कहते हैं कि आप उपासक हैं तो आपका संपत्ति पर मालिकाना हक नहीं रह जाता है। मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने कहा कि आप स्थिति स्पष्ट करके कोर्ट को संतुष्ट करें तभी आगे अपील सुनी जाएगी।

वरिष्ठ अधिवक्ता सुशील कुमार जैन ने कहा कि मेरा अधिकार खत्‍म नहीं होता है। उपासक होने के नाते संपत्ति पर मेरा कब्जा रहा है। यद्यपि देवता को न्यायिक व्यक्ति बताया गया है, ऐसे में उपासक को देवता की तरफ से मुकदमा करने का कानूनी अधिकार हासिल है। रामलला के वकीलों से अलग राय रखते हुए हुए वरिष्ठ वकील जैन ने कहा कि मूर्तियों को पक्षकार नहीं बनाया जाना चाहिये था। उन्‍होंने यह भी कहा कि मेरे उपासक होने की याचिका पर किसी ने भी आपत्ति नहीं जताई है। सारी पूजा अखाड़ा द्वारा नियुक्‍त पुरोहित ही करा रहे हैं। उपासक के तौर पर मेरे अधिकार पर कोई विवाद नहीं है। बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने 2010 के फैसले में अयोध्या में 2.77 एकड़ की विवादित जमीन को तीन पक्षों, सुन्नी वक्फ बोर्ड, निर्मोही अखाड़ा और राम लला के बीच बराबर हिस्‍सों में बांटने का फैसला दिया था।