नरसिम्हा राव ने रख दी थी POK के विलय की बुनियाद

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जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद पाक अधिकृत कश्मीर (Pok) के भारत में विलय की चर्चा गर्म है। मोदी सरकार के कई मंत्री यहां तक कि देश के उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू भी pok को लेकर खुलकर बयान दे चुके हैं। मीडिया का एक बड़ा वर्ग आए दिन पीओके के भारत में विलय से संबंधित अलग-अलग रिपोर्ट दिखा रहा है। ऐसे में इतिहास के पन्नो से यह जानना जरूरी है की पीओके पर भारत का स्टैंड क्या रहा है।

दरअसल यह पहला मौका नहीं है जब पाक के कब्जे वाले कश्मीर को लेकर भारत आक्रामक हो। इससे पहले भी कई बार भारत पीओके पर अपना दावा जता चुका है। सन 1990 में पाकिस्तान ने समूचे जम्मू कश्मीर पर एक प्रस्ताव पारित कर संयुक्त राष्ट्र से मध्यस्था के लिए कहा था। 1993 में अमेरिकी सरकार के प्रतिनिधि जॉन मॉलट व रॉबिन राफल भारत आए और वो भी पाकिस्तान की भाषा बोलने लगे। इसी बीच इस्लामिक देशों के समूह ने भी मांग कर दी कि भारतीय कश्मीर के हालात देखने के लिए उन्हें वीज़ा दिया जाए।

तभी कश्मीर पर भारत की घेराबंदी के बीच तत्कालीन प्रधानमंत्री पी वी नरसिम्हा राव ने ऐसा पासा फेंका की अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी समेत पाकिस्तान भौचक्के रह गए। राव सरकार ने 22 फरवरी 1994 को संसद के दोनों सदनों में एक प्रस्ताव पेश किया, जिसमें कहा गया कि जम्मू कश्मीर के भारत में विलय के वक्त जिस विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए गए थे उसमें समूचे जम्मू कश्मीर का भारत में विलय हुआ था। अतः समूचा जम्मू कश्मीर राज्य भारत का अभिन्न अंग है, पाकिस्तान को कश्मीर पर से अपने जबरन कब्जे को हटाना होगा। इस प्रस्ताव में पाकिस्तान को जम्मू कश्मीर में आतंकवाद को बढ़ावा देने का जिम्मेदार ठहराते हुए राज्य को भारत का आंतरिक मामला बताया गया तथा POK के भारत में विलय का संकल्प लिया गया।

यह प्रस्ताव संसद में सर्व सहमति से पास हुआ और पाकिस्तान को विश्व बिरादरी के सामने शर्मसार होना पड़ा, तथा कश्मीर को विवादित बताने की उसकी मंशा धराशाई हो गई।